एक डोर हे !
एक डोर हे !
एक डोर है मेरे और उसके बीच,
बहुत नाज़ुक डोर हे,
जब भी चलती हवा जोरो की,
डगमगाती वह दोनो छोर से,
हर दम लगता डर यही,
छूट ना जाए किसी एक छोर से,
आज आया तूफ़ान भयंकर,
फिर डगमगायी डोर हमारी,
कोशिश तो पुरझोर हुई छूटने की,
में ठहरा ज़िद्दी ढिट पकड़ रखी ज़ोर से,
आज तो दम था मुझ में सम्भालने का,
पर प्रिये करना इतना एहसान प्रेम पर हमारे,
जब बहक जाऊँ में तूफ़ान संग,
सम्भालना मुझे तब तक,
जब तक में और तुम “हम” ना हो जाए !