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VIVEK ROUSHAN

Abstract

4.5  

VIVEK ROUSHAN

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एक अंजान सफर

एक अंजान सफर

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मैं 

मेरी किस्मत 

और वक़्त 


तीनों साथ चले 

एक अंजान सफर के लिए 

मैं थक कर 


थोड़े देर के लिए बैठ गया 

साथ मेरे बैठ गई 

मेरी किस्मत भी 


और 

वक़्त निकल गया 

बहुत दूर 

बहुत दूर।


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