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एक अंधेरा सा

एक अंधेरा सा

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एक अंधेरा सा छा गया था

जब छोड़ा था तुमने मेरा साथ

झटके थे मेरे हाथ

हर ख्बाब टूट गया था

प्यार से भरोसा उठ गया था


यूँ लगा था अब मैं 

मर जाऊंगी 

पूरी तरह से बिखर जाऊंगी

कितना घुटी थी उस एक रात को मैं 

न सोयी थी उस रात को मैं 


तुम तो तोड़ हर बंधन चले गये थे

मुझे बेवफा कह गये थे 

क्ई बार सोचा तुमसे प्यार में दिये 

तुम्हारे सजा की वजह पुछू

तुम्हारे सर्ट के कालर को पकड़कर जोर से खींचू

पर उस रोज तुम एक सबक दे गये थे


कि मत करना यकीं किसी पर बंद कर आंखे

कोई नहीं होता यहाँ अपना

मतलब रहने तक जग अपना होता है 

मतलब न रहने पर सब हो जाते है अंधे


ये सोच आते ही मेरी आंखों से आंसू रूक गये थे

मन में आशाओं के ढ़ेर 

कमल दल खिल गये थे 


अब मैं हर गम सीने में दबाये रखती हूँ 

रोती हूँ तन्हाई में 

होठों पर मुस्कान सजाये रखती हूँ 


मैंने तो मन में अपने कमल दल खिला 

जीवन की जंग को जीत लिया है

पर तुम बताओ

जरा मुझे

तुम्हारे धोखे ने क्या तुम्हें एक 

पल के लिए भी 

चैन से जीने दिया है !


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