दयनीयता
दयनीयता
हे मेरे प्रभु...
अगर मेरा दुःख नहीं तो,
उस इन्सान का दुःख सुनना !
हे मेरे प्रभु...
अगर में उसके दुःख से अनजान हुं तो,
उस इंसान का दुःख मुझे क्यों होता है !
हे मेरे प्रभु...
अगर मेरा हाथ उसकी मदद के लिए चला गया तो,
उस इंसान के लिए मुजमे क्या है !
हे मेरे प्रभु...
अगर उसकी पुकार ने मुझे खींच सा लिया तो,
उस इंसान के प्रति मेरी भावना है उसे क्या कहते है !
हे मेरे प्रभु...
अगर (मैं) तेरा निर्दोष बालक हूं तो,
उसके दर्द की पीड़ा मुझे क्यों है !
भगवान कहते है...
ये दयनीयता है ! मेरे बालक !
जो तुम्हे श्रेष्ठ और खुशी महसूस करवाती है।
