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Dr.Shilpi Srivastava

Abstract

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Dr.Shilpi Srivastava

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द्विविध मन

द्विविध मन

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प्रमुदित मन आज विकल भी है, 

है शान्त किन्तु चंचल भी है, 

शीतल छाया में ताप बहुत ,

है क्लान्त,मलिन,रोशन भी है।


            विश्रुब्ध हृदय, मन खिला हुआ,

            क्यों द्विविध दशा को प्राप्त हुई,

            क्या यह जीवन की शिक्षा है? 

            जहाँ अग्नि प्रबल जलवाष्प भी है!


है सजल नयन,मन पुलकित भी, 

अभिलाषा भी, संतुष्टि भी, 

रोषित मन झंझावातों से, 

जहाँ पूर्ण चंद्र,वहां रात भी है ।

         


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