दुनियादारी : चलो सीख लेते है!
दुनियादारी : चलो सीख लेते है!
साथ निभाती दुनिया,
स्वार्थ सिद्ध कर जाती है,
कभी शरीर से, कभी पैसे से,
क्या कभी दिल से चाहती है?
दुनिया का दस्तूर नया है,
बहुत कुछ ये सिखाती है,
कर लो चाहे कैसा भी तुम,
हर वक़्त गलत हमें बताती हैं!!
चिकनी-चुपड़ी बाते करना,
झूठ को सबने परोसा है!
सबको खुद से मतलब है बस,
अब किस को, किस पर भरोसा है?
रिश्तो की झूठी दुनिया में,
कौन किसके अब वश में है?
अमीरो से है सबके रिश्ते,
गरीब अपनों को तरसते है!
घर घर की अब बात यही है,
किसी पर अब विश्वास नहीं है!!
टूटते है रोज़ कई सपने,
अब न किसी पर आस रही है!!
झूठे वादे, फूटी किस्मत,
जीना अब सीखा रहे है!!
गधे घोड़े साथ दौड़ रहे,
सब गधो को जीता रहे है!!
प्रेम की अब नैया डूबी,
साथ सबका दिख रहा है,
देखकर दुनिया की यारी,
"हेमंत" दुनियादारी सीख रहा है!!
