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दुनिया का दस्तुर

दुनिया का दस्तुर

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ये जो मेरे हम दर्द दोस्त से लगते है

अभी मुझे नोचेंगे।


ये जो मेरे साथ कुछ दूर चले है

एक पल भी ना सोचेंगे।


जो राह में ग़लतियाँ और भूल हुई

ये नज़र अंदाज़ ना करेंगे।


जो घाव दुनिया से अब तक छुपाएं थे

ये उन्हे ज़रूर कुरेदेंगे।


ग़म भुलाकर अगर में हँसना चाहूँगा

ये याद उन्हें दिलायेंगे।


जब मैं मायूस और थका हो जाऊँगा

ये मेरी लाचारी पर हँसेंगे।


रोशनी में तो ये साथ परछाई थे मेरे

ये अंधेरे मैं कहाँ टिकेंगे।


शायद यही दुनिया है और इसका दस्तूर

ये भी क्यों पीछे हटेंगे।


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