दरवाजे पे दस्तक़
दरवाजे पे दस्तक़
इतवार का वो दिन था
अपने सारे दुःख दर्द को दूर फेंक
सुख शांति को त्याग कर
चैन की साँस लेते हुए
बड़े इत्मीनान से,
नींद की गहराइयों में
डूब ही रहा था
तभी मेरे दरवाजे पे
किसी ने दस्तक़ दिया,
मैंने दरवाजा खोला
पूछा ! कौन है आप ?
उनमें से एक ने कहा
मैं अतीत हूँ...
ये मेरे दोनों भाई
सुख और दुःख है
मैंने कहा, ठीक है
क्या चाहिये आपको ?
उसने कहा,
बहुत दिनों से मेरे दोनों भाई
आपसे मिलने की
आस लगाए बैठे थे,
उन्हें कुछ बात करनी थीआपसे
मैंने कहा, अंदर आइये
आराम से बात करते हैं।
सुख ने कहा अगर में गलत नहीं
तो आप वही हो
जो अपने शांत स्वभाव से
सबके आदर के पात्र होते थे,
जो बिना सवाल किए
किसी के भी कहे का
पालन करते थे
जो अपने से ज्यादा
दूसरों की खुशी को पहले देखते थे।
वैसे तो मैं आपका साथ दे न सका
पर इसका मतलब ये नहीं की
मैं आपके पास न था,
याद कीजिये जब आप उसको
अपने पास पाते
आपके चेहरे पर प्यारी सी
मुस्कान होती थी ,
जब भी उन दोस्तों की
महफिल में होते
वो पल कैसे गुजर जाते
पता ही न चलता था।
भले ही हमेशा मैं
आपके साथ खशी बाँट न सका
पर कभी आपसे दूर न गया,
आखिर मेरे लिए तो
ज़िन्दगी से आप
कभी दूर न भाग सके
और मेरे साथ आगे बढ़ते रहे।
तभी उधर से दुःख बोलने लगा
कहा, आप कौन हो
वो मेरे भाई ने तो कह दिया,
मैं बस इतना कहूँगा
मैं उन दिनों आपके पास
हमेशा रहता था
आपकी गलियों से रोजाना गुजरता था,
भले ही में सुख की तरह
आपको हँसी न दे सका
उसकी तरह खुशियों की
महफ़िल न जमा सका,
पर मेरे लिए हमेशा
आप तड़पते रहे
एक क्रोध की मशाल में
उलझते रहे,
पर आखिर में मेरी ही वजह से
ज़िन्दगी का असली वजूद
आपको पता चला,
आखिर इसी सहारे
आप अपने कर्म क्षेत्र में
अटल विश्वास से डटे रहे।
आखिर में अतीत ने कहा
वैसे तो में सबकी ज़िन्दगी में हूँ
पर लोगों के नजरिये की बात है,
वो कितना और किस तरीके से
मुझे देखते हैं
मेरी अहमियत का जायजा
वो करते हैं,
वैसे तो मैं कहीं अंधेरों में
गुम सा हो गया हूँ
फिर भी पुरानी किताबों
या डायरी खोल के,
आज भी कोई पढ़ले
तो हँसता हूँ या रोता हूँ
पर याद तो मेरी है
अच्छा मैं चलता हूँ
आपको भी काम होगा।
मैंने कहा, सुनो
आते जाते रहना
जब भी मन करे
आकर मेरे पुराने दिनों को
याद दिलाते रहना।
