STORYMIRROR

Manoj Sharma

Abstract

4  

Manoj Sharma

Abstract

दर्पण

दर्पण

1 min
430



दर्पण मेरे घर की दीवार का अहम हिस्सा है

हवा और पानी के रंग की तीसरी वस्तु

जिसे रंगो की सही परख है

फ़लां रंग की मनोदशा में किस रंग का विचार पहन कर निकलूं

ये ही निकाल के देता है अंतर्मन की अलमारी से


ये मेरा पक्का असिस्टैंट है

जूतों की पालिश का समय

पैंट की इस्त्री

बैल्ट का तीसरा सुराख

कमीज़ के बटन

ऊपर की जेब का पूरक पैन

टाई का कसाव

कॉलर पर जमी थकान

शेव के दिन और आँख के नीचे का काला वर्कलोड

ये सब याद रखता है....


इसका घर पर होना इतना ज़ुर

ूरी है

कि इसे मिले बिना कोई बाहर नहीं जाता

ये भी समझता है

तभी दीवार से सटा, टंगा या जड़ा 

खड़ा रहता है

अड़ा रहता है


ये मेरे पिता के पहले से है

मेरे बचपन और मेरी बेटी के जन्म से

ये सब को सब कुछ सिखाता आया है

उम्र दर उम्र

पीढ़ी दर पीढ़ी


इसके रहते रहते

मेरे पित्रों के पित्र न रहे

मैं भी न रहूँगा न ही रहेंगे 

मेरे पुत्र पौत्र प्रपौत्र

इसके रहते रहते

ये सदा ही रहेगा


क्योंकि दर्पण मेरे घर की दीवार का अहम हिस्सा है....


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract