दर्पण
दर्पण


दर्पण मेरे घर की दीवार का अहम हिस्सा है
हवा और पानी के रंग की तीसरी वस्तु
जिसे रंगो की सही परख है
फ़लां रंग की मनोदशा में किस रंग का विचार पहन कर निकलूं
ये ही निकाल के देता है अंतर्मन की अलमारी से
ये मेरा पक्का असिस्टैंट है
जूतों की पालिश का समय
पैंट की इस्त्री
बैल्ट का तीसरा सुराख
कमीज़ के बटन
ऊपर की जेब का पूरक पैन
टाई का कसाव
कॉलर पर जमी थकान
शेव के दिन और आँख के नीचे का काला वर्कलोड
ये सब याद रखता है....
इसका घर पर होना इतना ज़ुर
ूरी है
कि इसे मिले बिना कोई बाहर नहीं जाता
ये भी समझता है
तभी दीवार से सटा, टंगा या जड़ा
खड़ा रहता है
अड़ा रहता है
ये मेरे पिता के पहले से है
मेरे बचपन और मेरी बेटी के जन्म से
ये सब को सब कुछ सिखाता आया है
उम्र दर उम्र
पीढ़ी दर पीढ़ी
इसके रहते रहते
मेरे पित्रों के पित्र न रहे
मैं भी न रहूँगा न ही रहेंगे
मेरे पुत्र पौत्र प्रपौत्र
इसके रहते रहते
ये सदा ही रहेगा
क्योंकि दर्पण मेरे घर की दीवार का अहम हिस्सा है....