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Neena Ghai

Tragedy

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Neena Ghai

Tragedy

द्रोपदी की दुविधा और उसका हठ

द्रोपदी की दुविधा और उसका हठ

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कुरुक्षेत्र का मैदान, 

लहूलुहान थी वह धरा जो स्त्री हठ का परिणाम रो- रो कर रही थी ब्यान।

कभी सोचा न था, द्रोपदी ने कि उसके खुले केश ले कर आएगी इतनी तबाही,

क्या आने वाली नस्लें माफ़ कर पाएंगी उस एक नारी के हठ को ,

या कभी देख पाएंगी उसकी वो असहनीय पीड़ा या फिर यह कह देंगी यह था केवल उसका अभिमान ।


खड़ी सोचती है , द्रोपदी 

यह न चाहा था कभी ,पर जो आग लगी थी इस सीने में,

वो आज भी दहक रही है लावा बन मेरी छाती में।

क्या आने वाली नस्लें इस कुरुक्षेत्र में बहे इस रक्त को देख धिक्कारेंगी इस द्रोपदी को,

या फिर आंखों में आंसू लिए इस असहाय द्रोपदी की पीड़ा का अनुमान लगा पायेंगी।

कभी देख पाएंगी उनकी आंखें

राज- दरबार का वह घृणित, और दिल दहलाने वाला दृश्य

जब छोटे-बड़े सब देख मौन थे अपनी पुत्रवधू को अपमानित होते हुए।

क्या यह कसूर था द्रोपदी का, कि

पांच-पांच महारथियों की वह पत्नी थी, जो हार गये थे बिन पूछे उसे चौसर की बाज़ी में

चीर-हरण हुआ था उसका

उस महायोद्धाओं के दरबार में।

क्यों न कोई वीर रोक सका

उस अनर्थ को होने से।

क्या फिर भी तारीख इतिहास में यही कहेगी, इन लाशों को लहूलुहान कुरूक्षेत्र की धरा को देख

क्यों ? ------क्यों द्रोपदी छोड़ दिए थे खुले केश

क्यों-क्यों, क्यों द्रोपदी हठ कर बैठी ।


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