दरमियान
दरमियान
किस हक से वो मुझे रोकते हैं,
क्यों हर बात पर अपनों की तरह टोकते हैं,
क्या है मेरे और उनके दरमियान
जो जहां को बताने से डरते हैं..!
कभी कभी मुलाकात को वो
इत्तेफ़ाक भी कहते हैं,
दोस्ती और इश्क़ में फर्क कि
हमेशा बात करते हैं,
उलझनों से भरे सवालों कि
मुझ पर बरसात करते हैं,
उनका कहना खुली किताब हूं मैं..
फिर भी क्यों खुद को पढ़ने से
रोकते हैं,
आखिर फिर वही सवाल मेरे
ज़हन में आता है,
क्या है मेरे और उनके दरमियान
जो जहां को बताने से डरते हैं..!
उनकी सादगी की बात हमेशा मेरे
दोस्त करते है,
मेरी हर बातों में चर्चे सिर्फ उसी
की करते हैं,
इनकार भी नहीं करते हैं और
स्वीकार भी नहीं करते हैं,
अनुकूलता और प्रतिकूलता पर
बहस बहुत करते हैं
क्या करूँ, मेरे दोस्त बस
यही प्रश्न करते है,
क्या है मेरे और उनके दरमियान
जो वो जहां को बताने से डरते हैं..!
मेरी कमियों को हर बार न
ज़रअंदाज़ करते हैं,
मुश्किलों में भी बातें लाजवाब करते हैं,
ग़लतियों पर पर्दे बेहिसाब करते हैं,
अपनी कहानियों में मेरे किरदार की
बात हमेशा करते हैं,
मेरे किरदार कि काबिलियत को
पहेलियों में परखते हैं,
मेरा सामने से गुजरने पर उनकी
मुस्कुराहट का राज
कौन बताए मेरे दोस्तों को,
क्या है मेरे और उनके दरमियान
जो वो जहां को बताने से डरते हैं!!