STORYMIRROR

Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

3  

Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

दरकते रिश्ते

दरकते रिश्ते

1 min
436

दरकते हुए रिश्तों के बीच,

पनपते है कुछ खुशी के बीज।


लोगों के मुस्कराते हुए चेहरे,

बयां कर देते है उनके स्वार्थ।


टूटी हुई माला के बिखरे हुए मोती,

समेट कर भर लेते है अपने स्वार्थ।


गरीब होकर खो देते है अपनी गरिमा,

ये टूटे फूटे रिश्ते यो ही अचानक।


अमीर बन जाते है यह रिश्ते

एक संयुक्त रूप धारण कर


एक अभेद्य किला बन जाते हैं,

अपनी गरिमा की धरोहर को बचाने के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract