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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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दर्दे -दिल की दवा

दर्दे -दिल की दवा

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मत पूछो मेरी हालत को, न जाने कहाँ प्रियतम खो गए।

 रोना ही रोना शेष बचा, बिछड़े तुमसे कई वर्ष हो गए।।


 दुनिया की इस भीड़ में ,तरसता मन तुमको पाने को।

 मनभावन मुखड़ा न मिलता कहीं, तुम तो बड़े निष्ठुर हो गए।।


 मन भटक रहा सुनने को ,वह भोली और मीठी वाणी को।

 गूँज रही कोलाहल चहु दिशि, कान मेरे अवरुद्ध हो गए।।


 तुम्हारी एक झलक पाने को ,आँखें भी थकित हो गई।

 यादों में तुम ही समाये, तुम ही मेरे जीवन हो गए।।


 स्वामी हो तुम इस सृष्टि के, मैं सेवक यह समझ ना पाया।

 तुम्हारी दृष्टि से कौन बच सका, क्षुद्र मेरे अनुभव हो गए।।


 दर्द भरे इस दिल को, कैसे तुमको मैं पेश करुँ।

 रखते तुम खैर सभी की," दर्दे- दिल की दवा" तुम हो गए।।


 जीवन के आनन्द में ऐसा डूबा, घाव बन पीड़ा देते हैं।

" नीरज" की तो दवा तुम ही हो, ऐसे मेरे भाव हो गए।।


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