दर्द
दर्द
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दर्द की पर्त दर पर्त ऐसी जमती गई,
सहेज कर दर्दे ग़म बिछौना बना लिया हमने।
कोई डर नहीं, कोई ख़्वाहिश नहीं,
हसरतों को मुट्ठी में बंद कर लिया हमने।
मौत भी आये तो अब कोई ग़म नहीं
जीने की चाहत को रेत की मानिंद उड़ा दिया हमने।
सिला चाहे जो भी दे यह मतलबी दुनिया
बदरंग चादर बेफिक्री का ओढ़ लिया हमने।