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Lokanath Rath

Tragedy Classics

4  

Lokanath Rath

Tragedy Classics

दर्द को समझ लेते...

दर्द को समझ लेते...

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कभी कभी आँसू को देखकर हम सोचते,

उसको फिर दर्द की निशानी समझ लेते,

और उस आँसू को पोंछने कोशिस करते,

जिसे ये ओठ खुद अपने आप पिलेते,

अगर इस आँशु मे कुछ दर्द होते,

तो वो कैसे ओठों मे समा जाते ?

जो ओठों की मुस्कान मे छुपे होते,

काश आप उस दर्द को समझ लेते।


जिस आँखों मे आँखे कभी डाला करते,

जिसमे डूबके चाहत की गहराई को नापते,

जो कितनी हसीन सपने भी देखा करते,

और फिर इशारों इशारों मे कुछ कहेते,

नजाने दिलमे कितने नई अरमान को जगाते,

वो आँखे जानो बहुत अनमोल ही होते,

ये आँसू तो उस आँखों से बहते,

वो कियूँ उसे दर्द को समझ लेते ?


हाँ ये हर कोई यहाँ भी मानते,

कभी कभी ये दर्द भी बहुत रुलाते,

पर हर रोने पे आँशु नहीं बहते,

पर जिनेके लिए भी हम हसलिआ करते,

सारे दर्द और तक़लिब दिलमे छुपा लेते,

और इस ओठों को हसने को कहते,

उसके पीछे सारे दर्द को छुपा लेते,

काश वो उस दर्द को समझ लेते।


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