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S Ram Verma

Abstract

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S Ram Verma

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दर्द की सौगात !

दर्द की सौगात !

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सुनो मैं आज बिलकुल 

भी नहीं रोई जानते हो क्यों !

क्योंकि मैं रो कर तुम्हारे 

दिए दर्दों को और हल्का 

नहीं करना चाहती !  


तुम्हारे दिए दर्द सौगात हैं 

मेरे लिए जिसको मैं किसी 

और से बाँट भी नहीं सकती !


दर्द की ये घुटन मेरे इन दर्दों 

को अपने आंसुओं से कहीं 

हल्का कर दे !


इसलिए ही तो आँखों में इन्हे 

कैद कर के मैंने अपनी पलकों 

पर पहरा बैठा रखा है ! 


ताकि तुम्हारे दिए दर्द यूँ ही 

सदा सहेजे रखूं मैं अपने ह्रदय 

के रसातल में ! 


सुनो मैं आज बिलकुल 

भी नहीं रोई जानते हो क्यों !


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