दर्द की लुकाछिपी
दर्द की लुकाछिपी
कमजोर न थी कभी पर क्यों कमजोर पड़ने लगी हूं,
हालातों से कर मुकाबला खुद से ही रुठने लगी हूं।
दर्द की लुकाछिपी बादलों की आवाजाही सी है,
दरिया दर्द का गहरा उसमें डूबने लगीं हूं।
भरता क्यों नहीं पाप करने वाले पापियों का घड़ा,
बूंद बूंद आंसू निकलते है आंखों से सहमने लगी हूं।
रावण,कंस,शुर्पणखा का आतंक इतना,
इन आजाद दरिंदो से आजकल बहुत डरने लगीं हूं।
अपने ही जब आपको राक्षस बन बर्बाद करने लगे,
उन राक्षसों की परछाइयों से बहुत घबराने लगी हूं।
सहम जाता है दिल उनकी निगाहों से हर लम्हा,
लम्हा लम्हा घुट घुट कर मैं सहमी हुई जीने लगी हूं।
मुकद्दर का खेल भी अजीब है जिंदगी में दोस्तों,
लोगों की ईर्ष्या और जलन की बू से आतंकित होने लगी हूं।
