दोस्ती
दोस्ती
चलो थोडा दिल हल्का करें
कुछ गलतियां माफ़ कर आगे बढें
बरसों लग गए यहाँ तक आने में
इस रिश्ते को यूं ही न ज़ाया करें
कुछ तुम भुला दो,
कुछ हम भुला दें
कड़ी धूप में रखा बर्तन ही
मज़बूत बन पाता है
उसके बिगड़ जाने का
मिट्टी को क्यों दोष दें
कुछ तुम भुला दो,
कुछ हम भुला दें
यूं अगर दफ़न होना होता,
तो कब के हो गए होते
सिल लिए थे कई ज़ख़्म हम दोनों ने,
तब जा के ये रिश्ते आगे बढ़े
कुछ तुम भुला दो,
कुछ हम भुला दें
दोस्ती एक घर है जिसमें
विचारों के बर्तन खड़केंगे ही
विचारों में है जो दूरियां
उनको क्यों आकार दें
कुछ तुम भुला दो,
कुछ हम भुला दें
यूं भावनाओं के आवेश में
चार बातें निकल जाती हैं
उन बातों का मोल बढ़ा कर
अपनी अनमोल दोस्ती का
मोल कम न करें
कुछ तुम भुला दो,
कुछ हम भुला दें।
