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Preeti Sharma "ASEEM"

Abstract

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Preeti Sharma "ASEEM"

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दोस्ती का रिश्ता

दोस्ती का रिश्ता

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मित्र बनाता हूँ

तलाशता हूँ।

अपनी रूह का सुकून ,

और .....बेचैन हो जाता हूँ।


मित्र बनाता हूँ, 

जो सुने मुझको,जिसके आगे 

दिल खोल ...मैं जाता हूँ।


मित्र बनाता हूँ।

रूह का रिश्ता जिससे, 

दो शब्द सुनने से जिसके,

लगे खुद से ही मिला आज खुलके।


मित्र बनाता हूँ।

जो रूह की तनहाईया मिटा जाये

आईना बनके ,जीवन में आ जाये

जीवन के अर्थ सही मायनों में समझा जाये।


मित्र बनाता हूँ।

दुनियावी रिश्तों -सा थोपा न जाये।

प्यार में ,सियासी -रंग न लाये।


जो समझे मुझको बिन कहे हर बात सुन जाये।

वक्त पे साथ, सांसो -सा सांस बन जायें।

मित्र बनाता हूँ।


 कहाँ पाऊंगा .......?ऐसा मित्र जब ,यह जान जाऊंगा।

भूत और वर्तमान की क्या. . . ?

मैं बात करूं।भविष्य का,

गारन्टी कार्ड भी कहां से पाऊंगा।


मित्र तो बहुत बनाता हूँ।

कौन मेरा मित्र है, यह सच साबित नहीं कर पाता हूँ।

रूह को पल का सुकून मिलता है।

परम -आनंदस्वरूप मित्र कहा पाता हूं।


मित्र बनाता हूँ।

अपनी भीतर के सूने -पन के साथ, 

मित्रों के साथ भी अकेला ही रह जाता हूँ।


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