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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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दोस्ती का लम्हा

दोस्ती का लम्हा

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हृदय का भार तब कम हो जाता है

जब भी मित्र तू मेरे संग हो जाता है


जब भी तेरी याद का लम्हा छूता है

वो लम्हा मेरा स्वर्णिम हो जाता है


वो पल में तो भावुक होकर रो देता हूं

जब तेरी बातों का असर हो जाता है


अब में उदास होना ही भूल गया हूं

जब से दूध में पानी सा मिल गया हूँ


वो लम्हा बड़ा ही यादगार हो जाता है 

जब साखी दोस्ती में पानी हो जाता है


वो लम्हा बड़ा ही खूबसूरत हो जाता है

जब भी मित्र तेरा नज़ारा हो जाता है


खुदा से यही मेरी आखरी दुआ है

हर जन्म में तू ही होना मेरा सखा है


वो पल नव मेरे लिये व्यर्थ हो जाता है

जिस पल में तेरा जिक्र खो जाता है


तेरे साथ का लम्हा आजीवन पूंजी है,

बाकी मेरी जिंदगी बिल्कुल फीकी है,


वो लम्हा मेरे लिये जन्नत हो जाता है

जब भी मित्र तेरा संग हो जाता है।



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