दोहरी दुनिया
दोहरी दुनिया


जीवन में जो निकले, दो कदम थे आगे,
लोगों ने खींचा, चार कदम पीछे ।
जो अपने कहे जाते थे,
कहलाने लगे वो पराए ।
सब सोचने लगे,
बताओ कैसे इन्हें डुबाए ।
जाने ये कैसी रीत है,
अपनों की अजीब प्रीत है ।
तुम्हारे हार में ही उनकी जीत है,
सब कहते है, हम तुम्हारे मीत है।
जलने की बू आती है,
खुशी गले के नीचे नहीं जाती है ।
फिर भी गुणगान गाते है,
कहते है आप हमें बहुत भाते है ।
जाने ये कैसी दुनिया है,
जाने ये कैसे नाते है ।