दोहे
दोहे
छलो किसी को तुम नहीं,
छले न जाओ और
जो खोया मिलना नहीं,
महँगाई का दौर !
कदम बढ़ें तो
कुछ नहीं,
हाथ बढ़ाना सोच
बाहर लागे चोट जो,
भीतर आवे मोच...!
छलो किसी को तुम नहीं,
छले न जाओ और
जो खोया मिलना नहीं,
महँगाई का दौर !
कदम बढ़ें तो
कुछ नहीं,
हाथ बढ़ाना सोच
बाहर लागे चोट जो,
भीतर आवे मोच...!