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कदम बढ़ें तो कुछ नहीं, हाथ बढ़ाना सोच बाहर लागे चोट जो, भीतर आवे मोच...! कदम बढ़ें तो कुछ नहीं, हाथ बढ़ाना सोच बाहर लागे चोट जो, भीतर आवे मोच...!