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Manu Sweta

Romance

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Manu Sweta

Romance

दिल

दिल

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ये दिल

न जाने क्या ढूंढता है,

हर रोज

न जाने क्या बुनता है।

एक ख्वाहिश

रोज दिल में पलती है

तेरी साज़िश

हर रोज़ ही चलती है।

कुछ दर्द के किस्से

न जाने हर रोज़ सुनते हैं

कुछ बातें दिल की

हर रोज़ ही कहते हैं।

कुछ अहसासों की बारिश

रोज़ दिल को मेरे भिगो जाती है,

कुछ कसमें दिल की

रोज ही जुबां पर आ जाती है।

कुछ ताना बाना सा

मैं रोज ही बुनती रहती हूँ

कुछ ज़ज़्बातों को

रोज़ ही सुनती रहती हूँ।

तेरी परछाई को

रोज़ सहलाती हुँ

तेरी आहट के लिए

कान दर पे लगा लेती हूँ।

ये दिल है न

न जाने क्या ढूंढता रहता है?



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