दिल वाला पेड़ और मैं
दिल वाला पेड़ और मैं
शाम की तन्हाई में
जब खड़ा था मैं
अपने दिल वाले पेड़ के नीचे,
कुछ पत्ते झड़ रहे थे
कह रहे थे मुझसे-
"शाम हो गई
अब वापस घर को जाओ-
खूब रह लिए अकेले
जाकर अब कहीं और
अपना दिल लगाओ "
फिर मैं
कुछ देर सोचता रहा-
उन दिल के बिखरे पत्तों को देखकर
जो बिखरे हुए अरमान थे,
शाखों को छोड़कर
उम्मीद से जुड़े थे !
जमीन पर पड़े पत्तों का एक इशारा था
और दिल वाला पेड़ मुस्कुरा रहा था...
अब दिल वाला पेड़ और पत्ते दोनों मिलकर कह रहे थे-
"दिल लगाओ और कहीं
क्योंकि जिंदगी यूं ही है
पत्ते अगर झड़ते भी हैं
तो पेड़ मुस्कुराता है,
अरमान कई टूट कर निकलते हैं दिल से
फिर भी
दिल तो दिल है मुस्कुराता रहता है..
किसी नए पत्ते के आने के इंतजार में..
और पत्ता
जो अरमान है वह कभी मरता नहीं
टूट कर भी उम्मीद से जुड़ा होता है !!"