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Rajiv Jiya Kumar

Abstract

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Rajiv Jiya Kumar

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दिल तो परिन्दा

दिल तो परिन्दा

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अकांक्षा का विस्तृत ब्रह्मांड 

उङने को बेेचैन,

पहुँच सके न मानव मन जहाॅ 

छूूूने उस ऊँचाई को

हौसले के पंख सजे हैं

उङ छू लू आसमान के सब रंग

हसरत यह अब भी जिन्दा है,

दिल अपना एक परिंदा है।।

स्वप्न सरीखे जहान से अपने

स्वप्न अपने जीत लाने का वादा है

हर सााँस सरगोशी करती कहती है

धङकते सोच पर कसा

कौन सा फंदा है,

दिल अपना एक परिंदा है।।

उङ चले अनंंत की ओर चलो

पल पल की यह सब माया है,

मंतव्य का सारा जोर लगा

किस सोच मेें भरमाया है,

सच यह तेरी अपनी उङान है

फिर विस्मित क्यूँ, 

क्यूँ बेेचैन बेकार की निन्दा है,

दिल अपना एक परिंदा है।।

         

   

 


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