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ARVIND KUMAR SINGH

Comedy

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ARVIND KUMAR SINGH

Comedy

दिल पे चला के आरी

दिल पे चला के आरी

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न तो लेनी चुनर मुझको 

और न ही सिर पे साड़ी

पहनुंगी अपनी मर्जी से

चाहे कर लो थानेदारी


पुरानी तो सारी रीति गई

कब से आया नया जमाना

अब भी सारे रोकना चाहेें

जब बाहर मुझको जाना

रोक टोक कर अब तो

मुझसे सारी दुनिया हारी


अब न रूकुंगी रोके से

चाहे कर लो थानेदारी


घूंघट में जब मैं चलती

उल्‍लू भी नजर न आऐं

गली मोहल्‍ले के लड़के

फिर कैसे मुझे रिझाऐं

कहना मान के सबका

मैंने गलती कर दी भारी


अब न रूकुंगी रोके से

चाहे कर लो थानेदारी


घर से बनठन मैं निकली

तो शामत आई सड़को की

जब से घूंघट छोड़ दिया

लाइन लगी है लड़को की

अब तो मुझको देख रहे

मोहल्‍ले के सब व्‍यापारी 


अब न रूकुंगी रोके से

चाहे कर लो थानेदारी


कोई डार्लिंग कहता मुझेे

और कोई कहता है जानूं

फिर क्‍यों न बन के निकलूं

जो कहना किसी का मानूं

गदर मचा के अब रख दुंगी

मैं दिलों पे चला के आरी


अब न रूकुंगी रोके से

चाहे कर लो थानेदारी


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