दिल की दिल से चाहत
दिल की दिल से चाहत
दिल की दिल से चाहत थी कि तुझ से वास्ता पड़े,
तेरी राहों में पड़े हैं,आँखों से कुछ तो तर्जुमा मिले।
कर्ज़ गै़रों का तेरे दर पे आ कर ग़र चुकाना पड़े,
ज़ख्म हर अब तेरी मरहम का अब आसरा बने।
चाहतों के किसी ओर का न अब यों कारवाँ बने,
तेरे काफ़िले पे आए हैं, यों न अब फ़ासला बने।
दूरियाँ तो झेली हैं बहुत, कोई तो पासवाँ मिले,
करीब आ कर के कोई तो दिल की दास्ताँ लिखे।
कुछ तो तेरा इशारा हो, अब साथ तुम्हारा मिले,
जुदा हो कर बस हमें अब तो कोई किनारा मिले।
दीदार बस हो जाए, तो जन्नत का दायरा मिले,
जीने की उम्मीद में बस नया यों आशियाँ मिले।
दर्द के किसी पल में कभी तो तेरा सामना करें,
तेरी खुश्बु में मिल के खत्म होने का फ़ैसला करें।
फूलों से भी चुभन की किस्मत न वाबस्ता रहे,
जहन्नुम से जन्नत का सफ़र अब न अधूरा रहे।
छिना है सुकून चाहतों का, अब न छिनता रहे,
पल वो बेदर्द ख़्वाबों में भी न बस हमारा रहे।
लौ को जलाए रखा है, यों ही धुआँ जलता रहे,
हवाओं में इस धुएँ की, रोशन ख़्वाबग़ाह रहे।
इन्तज़ार की राह पे मुझे अब तेरा काफ़िला मिले,
कारोबार कज़ा से दूर कुछ तो ज़िन्दगी सा मिले।
दिल की दिल से चाहत थी कि तुझ से वास्ता पड़े,
तेरी राहों में पड़े हैं,आँखों से कुछ तो तर्जुमा मिले।
फिल्म= निक़ाह
गीत= दिल की आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले