दिल की बात दिल में
दिल की बात दिल में
कितने बात थे हमारे दिल में
तू सामने थी पर मैं कह न पाया
बस तेरी आंखों को देखकर।
मैं ठहर सा गया
और कुछ बोलता
इससे पहले ही
मेरी बातें आंसुओं में बह गई !
पर याद है मुझे
तू कैसे मुझे
अपना कहा करती थी
जब भी मैं दुखी होता था
अपनी बाहों में
भरा करती थी ..!
कितने बात थे हमारे दिल में
तू सामने थी पर मैं कह न पाया।