दिल है कि मानता नहीं
दिल है कि मानता नहीं
न जाने क्यों,
ये दिल बार-बार तुम पे ही आता है ?
जितना तुमसे दूर भागना चाहूं ,
उतना ही , तुमसे मिलने को चाहता है!
क्या कुछ नहीं किया, तुमसे दूर जाने को ,
फिर भी ना जाने , क्यूं तुम्हें ही चाहता है ?
हर संभव कोशिश की, तुम्हें भूल जाऊं ,
ना जाने फ़िर भी , ये तुम्हें इतना क्यों चाहता है ?
शायद कोई शक्ति है, जो ये जानती है ,
ये दिल सिर्फ़ , तुम्हारे लिये ही धड़कता है!
इसीलिये बार-बार ये दिल , सिर्फ़ तुम पे ही आता है !