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Praviksha Dubey

Fantasy

4  

Praviksha Dubey

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दिल ए नादाँ

दिल ए नादाँ

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दिल-ए-नादाँ को रुसवा क्यूँ किया जाये

अहल ए महशर से शिक़वा क्यूँ किया जाये


सोहबतों के दरम्याँ रह सिखा नया बहुत

तालीम-ए-अदब को ज़ाया क्यूँ किया जाये


अच्छी हैं जो ज़माने की नजर में बेहिसाब

शक़्ल-ए-सीरतों को बे-पर्दा क्यूँ किया जाये


हम बे-ख़ौफ कह देते हैं हँस कर ख़ुदा-हाफ़िज़

जाने वाले को रोकने का इरादा क्यूँ किया जाये


दुआ वही है जो दिल से बे-ख़ुदी में निकले

ख़ुदा से पाकीज़गी का इशारा क्यूँ किया जाये


बे-नूर हो जातीं हैं उदास मग़रिब की फ़जाएं

मशरिक़ से बे-मतलब तक़ाज़ा क्यूँ किया जाये


रविश अपनी जुदा है बहुत ज़माने से मगर

इस बात पर किसी से झगड़ा क्यूँ किया जाये



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