दिल ए नादाँ
दिल ए नादाँ
दिल-ए-नादाँ को रुसवा क्यूँ किया जाये
अहल ए महशर से शिक़वा क्यूँ किया जाये
सोहबतों के दरम्याँ रह सिखा नया बहुत
तालीम-ए-अदब को ज़ाया क्यूँ किया जाये
अच्छी हैं जो ज़माने की नजर में बेहिसाब
शक़्ल-ए-सीरतों को बे-पर्दा क्यूँ किया जाये
हम बे-ख़ौफ कह देते हैं हँस कर ख़ुदा-हाफ़िज़
जाने वाले को रोकने का इरादा क्यूँ किया जाये
दुआ वही है जो दिल से बे-ख़ुदी में निकले
ख़ुदा से पाकीज़गी का इशारा क्यूँ किया जाये
बे-नूर हो जातीं हैं उदास मग़रिब की फ़जाएं
मशरिक़ से बे-मतलब तक़ाज़ा क्यूँ किया जाये
रविश अपनी जुदा है बहुत ज़माने से मगर
इस बात पर किसी से झगड़ा क्यूँ किया जाये
