प्रकृति का नवसृजन
प्रकृति का नवसृजन
घटित कारक होते हैं
रहतीं हैं गतिशील क्रियायें
आत्मनेपदी
या
परस्मैपदी के
कई लकारों में
जीवन का रूप कुछ इस तरह चलता है
होता है प्रत्यय से
प्रकृति का नवसृजन
उपसर्ग के लगने पर
बदल जाता है अर्थ
जीवन का नियम कुछ इस चलता है
संहिता से निर्मित हुयी
सन्धि के समान
रहता है एकीभाव में
अथवा
परिस्थितियों के अनुसार
ढल जाता है विच्छेद स्वरूप में
जीवन का व्याकरण कुछ इस तरह चलता है
धीरे-धीरे समास होकर
ले लेता है
संक्षिप्तीकरण का रूप
जीवन का नियमन सूत्र कुछ इस तरह चलता है
पद्यों में निबद्ध
वय का सार रूप
गद्यमयी लेखन सा
धारण कर विस्तृत स्वरूप
जीवन का साहित्य कुछ इस तरह चलता है
विस्मयबोध अहो
हे, अरे, का सम्बोधन
कर्तृत्व का होता भान
एक शब्द के अर्थ अनेक
जीवन का वाक्य विन्यास कुछ इस तरह चलता है।