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धूप

धूप

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 एक

 

धूप में

मुरझाता है चेहरा

धूप में खिलता है

बदन

 

दो

 

धूप बहाती है

पसीना

धूप को पसंद है

कमाई का नमक

 

तीन

 

धूप उतरती है

गेहूँ की बाली में

धूप प्रवाहमान है

हमारे रक्त में

 

 चार

 

धूप से चल के आई आँखें

चुँधियाती हैं

कमरे में घुसते हुए

वक़्त लगता है

खुली दुनिया को

चारदीवारी तक सिमटने में

पाँच

 

कोमल रहती हैं

पंखुड़ियाँ फूल की

धूप में सख्त होते हैं

उसके काँटे

दुलराती हैं

समान भाव से

धूप हर स्वभाव को 

 


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