धूप छांव सा जीवन
धूप छांव सा जीवन


सम्बन्धों को निभाना
कहाँ होता है आसान!
आशा और विश्वासों का
देना पड़ता है बलिदान
आकांक्षा और अपेक्षाएं
हो जाती हैं धूल धूसरित
धूप छाँव सा यह जीवन
कभी हुलसता सुख में
तो कभी दुःख से मुरझा जाता है
ऋतु जैसे बदल जाते संबन्ध
बदल जाता आयु का अनुगमन
जीवन चलता रहता अनवरत
बंधा सम्बन्धों की डोर से
खिंच कर टूटने न पाये डोर
यह प्रयत्न रहता है निरन्तर
गांठ जो पड़ जाये एक बार
स्निग्धता कैसे बचे जीवनभर!