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धुआँ

धुआँ

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मेरी मौत का सामान लिये आये हैं,

सुना है वो फिर से

मुहब्बत की सौगात लिये आये हैं।


अब जनाजे को भी तेरी

कद्र ना रही तेरी ये मुसाफिर,

कब्रिस्तान का रास्ता शहर से जो जुड़ा है।


फकत एक तन्हाई से यूँ डरकर,

इब के मुहब्बत ना करेंगे हम कभी,

सुना है मुहब्बत की कहानियाँ सुनाने वाला,

मेरी कहानी के इंतजार में ही बैठा है।


परवरिश की थी मैंने भी अपने दिल की कभी,

फिर धोके में वो औरों के आ गया,

जला दिया मेरे सुकून का आशियाना,

अब धुआँ उड़ाकर राख बन रहा।


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