धरती से रूठ गया
धरती से रूठ गया
बारामासी नदियों का पानी सूख गया।
बदरा तक जैसे इस धरती से रूठ गया।।
हमने माटी पर इतना अत्याचार किया।
पेड़ों को काटा और शहर आबाद किया।।
कांक्रीट की जंजीरों से मिट्टी को बांधा।
गांव शहर को बांट लिया आधा आधा।।
जल जंगल और जमीन सब लूट लिया।
इन्हे बचाने वालों को सबने सजा दिया।।
पौध लगाकर लोग साल भर भूल गए।
अपने अपने जीवन झूले में झूल गए।।
जिम्मेदारी बस त्योहारों तक रहती है।
बचे दिनों में धरती सब कुछ सहती है।।
यदि अपने आसपास को हरा बनाना है।
बच्चों जैसे पौधों में निज स्वप्न सजाना है।।
ये बड़े होकर के बच्चों के संरक्षक होंगे।
हम नहीं रहेंगे जब भी, ये रक्षक होंगे।।