धरोहर
धरोहर
अतीत की धरोहर जब को देखती हूँ
गर्व के अहसास से भर जाती हूँ ।
ये अतुल्य कुछ टूटी,कुछ आधी अधूरी धरोहर हमारी
जो बांधकर रखती है एक बंधन से हर पीढ़ी को बारी-बारी ।
ये एक ऐसा उपहार है जो हमारे पूर्वजों से मिलता है
हम सँवारते हैं सम्भालते हैं और फिर भविष्य को सौंप जाते हैं ।
साक्षी है वह समय स्वयं भी , जो जाने कब से समेट रहा इतिहास है
नहीं ये कोई स्मृति,रखना सदा धरोहर अपनी ख़ास है ।
ये धरोहर ही तो है जो करती निर्मित हमारा इतिहास है ।
संस्कृति,विरासत और गौरवशाली ये सभ्यता ही तो हम सबकी पहचान है
जो विश्वपटल पर राष्ट्र को दिला रही ऊँचा स्थान है।
