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Dr J P Baghel

Abstract

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Dr J P Baghel

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धरा पर उतर परी

धरा पर उतर परी

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मन मेरा आज उदास, धरा पर उतर परी,

इन खंडहरों की करुण कहानी सुना, अरी ।


कितनी ही बार बसी होगी, उजड़ी होगी,

इन अवशेषों से झांक रही है जो नगरी ।


छूकर आई जो हवा भग्न प्राचीरों को,

बुदबुदा रही, है सायं-सायं में आह भरी ।


मानवता यहां लुटी होगी, रोई होगी,

अंबर को चीर उठीं होंगी चीखें गहरी ।


कुछ लोग धर्म के ध्वज लेकर आ धमके हैं,

जनता में छाया मौन, जी रही डरी-डरी ।


वे उगल रहे हैं बोल लड़ाई-झगड़े के,

बतलाते खुद को शांति और सुख के प्रहरी ।


कह री, जाकर, धंधा इनका ध्वंसों का है, 

मंडराई है फिर अंबर पर काली बदरी ।


        


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