धरा पावनी
धरा पावनी
धरा पावनी हर्षित है,
देख नजारा
अपनेपन का/
देकर छतरी मानवता की
जला मशाल
दे संदेशा ये जन-जन को
मानव मन में सदा बहे
दया धर्म की दरिया
बनी बालिका
आज सहायक जैसे
करते रहें
यही सब काज
भूखा रहे न कोई जग में
पर पीड़ा का हो
अहसास
सच्ची पूजा की
करें देवता भी
दरकार।।