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Rashi Saxena

Abstract

4  

Rashi Saxena

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उम्र ए रफ़्ता ज़रा ठहर

उम्र ए रफ़्ता ज़रा ठहर

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चलो फिर उन्हीं राहों से हम तुम गुज़र के देखते हैं 

साथ-साथ कुछ दूर और सफ़र कर के देखते हैं ।


रुक जाएगा वक़्त जो तुम रुक जाओ चलते-चलते

चंद लम्हे संग जी लें, कुछ देर यहीं ठहर के देखते हैं।


इधर तुम हो और तुमसे वाबस्ता तमाम हसरतें हमारी 

उस सम्त क्या है वहाँ किसी रोज़ चलकर के देखते हैं।


ख़्वाबों की बारिशें हैं, भीगा-भीगा सा ये मौसम भी हसीं है 

पानी में तस्वीर उतारें, मुट्ठी में बूँदों को भरकर के देखते हैं।


नूर की चादर सी फैल जाती है …सुना है ..तेरे मुस्कुराने से 

शब ए ताराक़ी में कभी उस जानिब रुख़ कर के देखते हैं।


ज़िंदगी बेवफ़ा सही,पर कोई एक लम्हा तो होगा मेरे नाम 

ऐ! उम्र-ए-रफ़्ता ज़रा ठहर,कुछ और सबर कर के देखते हैं।


कुछ यादें, कुछ वादे, कुछ ख़ुशियाँ, कुछ ग़म हैं मेरे दामन में 

ये अमानत चलो आज अहले-जहाँ की नज़र कर के देखते हैं।


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