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Ajay Gupta

Abstract Children

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Ajay Gupta

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धरा का आभूषण

धरा का आभूषण

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जो मैंने एक पौधा लगाया 

दे पानी उसको मन हर्षाया

धरा ने नव आभूषण पाया

था वह अभी लघु रूप, 

पत्तियाँ उसकी सुकुमार 

हवा के झोंके झूला पर बैठाते 

हम भी पानी उसे पिलाते 


कुछ ही वर्षों में वह वृक्ष बना विशाल 

बसंत ने भरा मंजरी से उसका आँचल 

चिड़ियों ने ले आश्रय उस तरु का 

खग शिशु के कलरव से गूंजे मेरा अंचल 

कुछ भी दिन में छोटे फल भी आए 

मिले राहगीर को छाया और फल मेरे मन हर्षाये


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