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Sudhir Srivastava

Comedy

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Sudhir Srivastava

Comedy

धक्का देने कि सुख

धक्का देने कि सुख

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कल रात यमराज 

दौड़ा दौड़ा मेरे पास आया,

और मुझे प्रणाम कर कहने लगा।

प्रभु! बिना किसी सवाल जवाब के

बस मेरा इतना सा काम करा दीजिए,

किसी दल से चुनाव का टिकट दिला दीजिए 

या फिर निर्दल ही मेरा नामांकन करा दीजिए।

मुझे भी अब चुनाव लड़ना है 

साम दाम दंड भेद जैसे भी हो

किसी तरह चुनाव जितवा दीजिए।

मैंने उसे रोकते हुए पूछा -

ये चुनावी कीड़ा तेरे दिमाग़ में कैसे घुस गया?

क्या तू रोजगार विहीन हो गया?

यमराज ने हाथ जोड़कर अपना सिर खुजाते हुए 

बड़े भोलेपन कहा - नहीं प्रभु! ऐसा कुछ नहीं है,

मैं वीआरएस ले लूँगा, मगर चुनाव जरुर लड़ूँगा।

बस! मुझे भी एक बार माननीय होने का सुख उठाना है।

इतना ही नहीं सदन में

हुड़दंग करना है,

अध्यक्ष पर कागज के गोले फेंकना है,

माइक उखाड़कर विपक्षियों को घायल करना है,

संसद की कार्यवाही में बाधा डालना है,

विरोध प्रदर्शन, सच्चे झूठे आरोप लगाना है,

और सबसे पहले दो-चार माननीयों को धक्का देकर 

धक्का देने के सुख का आत्म अनुभव करना है,

क्या अब भी पूछोगे कि मुझे चुनाव क्यों लड़ना है?

या मेरे लिए चुनाव लड़ने का इंतजाम करना है?

अथवा मेरी मित्रता का पटाक्षेप करना है?

आप कुछ करो या न करो मेरी बला से

मुझे तो बस! चुनाव लड़ना, जीतना और 

माननीय बनकर माननीय होने का अनुभव लेना है

क्योंकि मुझे माननीयों पर खण्ड काव्य लिखकर 

साहित्य का नोबेल पुरस्कार लेना है

जिसे आपको समर्पित करना है।



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