STORYMIRROR

Dhirendra Panchal

Romance

4  

Dhirendra Panchal

Romance

धीरे धीरे ही सही

धीरे धीरे ही सही

1 min
40

हर सफर में हमसफ़र की

चाहतें दिखती यहाँ हैं ।

देखते हैं दिल की बहती 

कश्तियां रुकती कहाँ हैं ।

हर घड़ी हर मोड़ पर 

कुछ कर गुजरने की कशिश में ,

आँसुओं से यह धरा 

जज्बात अपने बुन रही है ।

धीरे धीरे ही सही कुछ बात अब तो बन रही है ।


उनकी तन्हाई को बस्ते 

में उठा लाया था मैं ।

बेबसी बस इतनी थी कि 

कुछ न कह पाया था मैं ।

हो सकूँ उनका की मैं ये 

सोच कर घबरा रहा था ,

क्या पता हमको की दिन 

वो उंगलियों पर गिन रही हैं ।

धीरे धीरे ही सही कुछ बात अब तो बन रही है ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance