धीरे धीरे ही सही
धीरे धीरे ही सही
हर सफर में हमसफ़र की
चाहतें दिखती यहाँ हैं ।
देखते हैं दिल की बहती
कश्तियां रुकती कहाँ हैं ।
हर घड़ी हर मोड़ पर
कुछ कर गुजरने की कशिश में ,
आँसुओं से यह धरा
जज्बात अपने बुन रही है ।
धीरे धीरे ही सही कुछ बात अब तो बन रही है ।
उनकी तन्हाई को बस्ते
में उठा लाया था मैं ।
बेबसी बस इतनी थी कि
कुछ न कह पाया था मैं ।
हो सकूँ उनका की मैं ये
सोच कर घबरा रहा था ,
क्या पता हमको की दिन
वो उंगलियों पर गिन रही हैं ।
धीरे धीरे ही सही कुछ बात अब तो बन रही है ।

