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madhav jha

Drama

3  

madhav jha

Drama

दहेज का दर्द

दहेज का दर्द

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380

जैसे जैसे होती मेरी बिटिया सयानी

क्षण क्षण बढ़ती चिन्ता मेरी

कैसे इसका ब्याह रचाऊं,

हो रही दहेजों की मांग भारी

जैसे जैसे होती। 


जीवन अपने जो भी कमाया,

सारी इनकी परवरिश में है लगाया। 

अब कहां से लाऊं इतना धन,

जिससे बनेगी मेरी बिटिया दुल्हन।

जैसे जैसे होती मेरी


देखकर दुनिया की जालिम रीति

प्रण किया मैंने न करूंगा इन संग प्रीत

चाहे रहे जीवन भर मेरी बिटिया कुंवारी

मांगूंगा ना कभी धन की भीख

जैसे जैसे होती मेरी


क्षण क्षण बढ़ती चिन्ता मेरी

शर्म करो ऐ बेटों वालों

कैसी ये मांग तुम्हारी

वंश बढ़ेगा जिससे तुम्हारा

उस से क्यों करते लेनदारी

जैसे जैसे होती।


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