दहेज का दर्द
दहेज का दर्द
जैसे जैसे होती मेरी बिटिया सयानी
क्षण क्षण बढ़ती चिन्ता मेरी
कैसे इसका ब्याह रचाऊं,
हो रही दहेजों की मांग भारी
जैसे जैसे होती।
जीवन अपने जो भी कमाया,
सारी इनकी परवरिश में है लगाया।
अब कहां से लाऊं इतना धन,
जिससे बनेगी मेरी बिटिया दुल्हन।
जैसे जैसे होती मेरी
देखकर दुनिया की जालिम रीति
प्रण किया मैंने न करूंगा इन संग प्रीत
चाहे रहे जीवन भर मेरी बिटिया कुंवारी
मांगूंगा ना कभी धन की भीख
जैसे जैसे होती मेरी
क्षण क्षण बढ़ती चिन्ता मेरी
शर्म करो ऐ बेटों वालों
कैसी ये मांग तुम्हारी
वंश बढ़ेगा जिससे तुम्हारा
उस से क्यों करते लेनदारी
जैसे जैसे होती।
