देवता के मानवीय गुण
देवता के मानवीय गुण
वह था माखन चुराने वाला भी
वहीं था धर्म की राह दिखाने वाला भी
कभी था वह धर्म की राह पर अडिग
कभी रण छोड़कर भागने वाला भी
कभी गोपियों के चीर चुरा कर उनको सताया
और कभी चीर बढ़ाकर द्रुपद सुता को बचाया
कभी इतने विनम्र की सुदामा के चरण पखारे
कभी इतना गर्व कि यह संसार कुछ नहीं बिना हमारे
मानव जीवन की भूमिका मोहन ने क्या खूब निभाई
कभी उज्ज्वल चरित्र रहा कभी रह गई थोड़ी रुसवाई
हम में हर एक में है उस मोहन की परछाई