श्रीमद्भागवत-२६२; बलराम जी का व्रजगमन
श्रीमद्भागवत-२६२; बलराम जी का व्रजगमन
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
बड़ी इच्छा और उत्कण्ठा थी
बलराम जी के मन में व्रज के
नन्दबाबा आदि स्वजनों से मिलने की।
रथ पर सवार हो द्वारका से
नंदबाबा के व्रज में गए
उन्हें अपने बीच में पाकर
गोपों ने गले लगाया था उन्हें।
यशोदा माता और नन्बाबा को
प्रणाम किया था उन्होंने
प्रेमअश्रू की धारा बह निकली
बलराम जी को आशीर्वाद देने लगे।
मीठी बातें की गवालवालों ने
गवालवालों ने पूछा उनसे
‘ वासुदेव जी आदि सब बन्धू
सकुशल तो हैं ना हमारे ‘।
बलराम जी का दर्शन करके
गोपियाँ भी निहाल हो गयीं
हंसकर उन्होंने पूछा उनसे
‘ सकुशल तो हैं ना कृष्ण जी।
अपने भाई बंधुओं की उन्हें
या अपने माता पिता की
याद तो आती ही होगी
क्या यहाँ आएँगे वो भी।
हमारा स्मरण करके क्या वो कभी ‘
ये सब पूछा जब गोपियों ने
प्रेम भरा संदेश सुनाया कृष्ण का
सांत्वना दी बलराम जी ने उन्हें।
और वसन्त के दो महीने
चैत्र, वैशाख निवास किया वहीं
रात्रि के समय गोपियों में रहकर
अविवृद्धि करने उनके प्रेम की।
अपनी पुत्री वारुणी देवी को
वरुण जी ने भेज दिया वहाँ
एक वृक्ष के खोडर से बह निकलीं
सुगन्ध से वन को सुगंधित कर दिया।
गोपियों को लेकर बलराम जी
पहुँच गए वहाँ, और उन्होंने
उस सुगन्धित रस का पान किया
और रस पान किया गोपियों ने।
उस समय गोपियाँ बलराम के
चरित्रों का गाण कर रहीं
और वे मतवाले होकर
वन में विचर रहे वहीं।
जलक्रीड़ा के लिए यमुना जी को
बलराम जी ने था पुकारा
यमुना जी ने उन्हें मतवाला देखकर
आज्ञा का उल्लंघन कर दिया।
जब वह नहीं आयीं तो
क्रोध में बलराम जी ने
यमुना जी को खींच लिया था
अपने हल की नोक से।
यमुना जी से कहा उन्होंने
‘मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया तुमने
सौ टुकड़े कर दूँगा मैं
हल की नोक से तुम्हारे ‘।
यमुना जी भयभीत हो गयीं
चरणों पर गिर पड़ीं उनके
बोलीं ‘ प्रभु ! पराक्रम भूली थी आपका
आप मुझे क्षमा कीजिए।
आपका अंशमात्र शेष जी
सारे जगत को धारण करते
वास्तविक स्वरूप को ना जान सकी
ये अपराध हो गया मुझसे।
प्रार्थना स्वीकार करके उनकी
क्षमा किया बलराम ने उन्हें
गोपियों के साथ वन में
जलक्रीड़ा करें वे यमुना में।
परीक्षित, यमुना जी अब भी
बलराम जी के खींचे हुए मार्ग से
बहतीं हैं जब तो जान पड़तीं हैं
उनका यश गान कर रहीं हों जैसे।