देशप्रेम
देशप्रेम
कोटि-कोटि नमन करता हूँ
भारत के वीर सपूतों को
देश हित में जिसने प्राण तजे
उन भारत के अमर शहीदों को !
सह जाए जुल्म अनेकों दुश्मन के
वे अभिनंदन से वीर यहाँ बसते हैं
उन्मुक्त गगन के वे पंछी
निज अपना नीड़ बसाते हैं !
राष्ट्र चेतना के वे प्रहरी
जो राष्ट्रधर्म निभाते हैं
जो डरते नहीं अरिदल से
वे भारत के बलिदानी हैं !
नारी गौरव की रक्षा
बुजुर्गों को शीश नवाते हैं
घास की रोटी खाकर भी
अरिदल को नाच नचाते हैं !
जो गुलामी की रोटी तोड़े
वे क्या जाने मतलब आज़ादी का
स्वाभिमान की ख़ातिर मारे ठोकर
वे बतलाते महत्व आज़ादी का !
सुभाष की धरती पर खड़ा
उन्मुक्त गगन की सैर करता हूँ
मैं माँ भारती का पुत्र
अपनी माटी का गौरव गाता हूँ !
भारती के लाल आतप शीत सहकर
मातृभूमि का कर्ज चुकाते हैं
दुर्गम मार्ग पर आगे बढ़कर
रेगिस्तानों में भी गश्त लगाते हैं !
गुरुनानक बिस्मिल की धरती
पावन गंगा जमुना का संगम
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
गूंजे जहाँ देशभक्ति का सरगम !
आओ प्रण ले इसकी रक्षा का
जय जवान जय किसान गाएँ
ध्यान रहे राष्ट्र की मर्यादा का
इसकी माटी से भाल सजाएँ !