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Himanshu Sharma

Abstract

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Himanshu Sharma

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देखो

देखो

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है दश्त-ओ-बियाबाँ जिधर देखो, 

राह निकलेगी यहाँ से इधर देखो।


हैं निशान जल्वत के, यहाँ से दूर, 

पड़ेंगे राह में, किस के घर, देखो।


ख़ल्वत के भी अब मज़े आने लगे, 

है कैसा ये तन्हाई का असर देखो।


हमें ज़माने से दूर बसानी है दुनिया,

अपनी हयात सजाता, बशर देखो।


ऊँची दीवारों से, पहुँचे नहीं सदायें, 

हम तोड़ रहे हैं ये दीवारों-दर देखो।


ढल रहा है देखो आफ़ताब धीरे से, 

खूबसूरत इस शाम का मंज़र देखो।


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