देखो ये ज़िन्दगी
देखो ये ज़िन्दगी
कैद में हो गई फिर से,
देखो ये ज़िन्दगी ,
वही दो सलाखें में जिनसे,
कभी झांकती थी ये ज़िन्दगी।
मगर इस बार कैद थी,
एक खौफजदा ज़िन्दगी,
मौत से जीतने को,
जब लड़खड़ाई ज़िन्दगी।
एक वायरस ने आकर,
सारे शहर को डरा दिया,
कई जानों का अपने,
खौफ से विध्वंस किया।
कोरोना वायरस ऐसा जिसके,
तोड़ का कोई छोर नहीं,
लग जाने पर रोग ये,
कुछ घंटों में थी मौत लिखी।
सरकारी आदेशों के पालन पर,
सारे शहर को था बंद किया,
हाथ मिलाने से जहाँ थी समस्या,
वहीं छूना भी दूभर हुआ।
लोग मास्क पहने नम आँखों से,
एक - दूजे को थे तक रहे,
कोई विचारे ये गंभीर समस्या,
तो कोई इस पर भी थे हँस रहे।
हर विकल्प जब बेमानी हुआ,
और घटता क्रम हावी हुआ,
तब कैद में हो गई फिर से,
देखो ये ज़िन्दगी।।
