देख के तुम मुस्कुराओ तो सही
देख के तुम मुस्कुराओ तो सही
देख के तुम मुस्कुराओ तो सही
दिल में चाहत तुम जगाओ तो सही
दर हक़ीक़त हिज़्र की यूँ रात में
वस्ल का वादा निभाओ तो सही
हो ज़ुल्म की जितनी इंतेहा यहाँ
दास्ताँ अपनी सुनाओ तो सही
मुद्दतों से नींद आती अब नहीं
सपने में तुम अब बुलाओ तो सही
दर्द भी मेरा मुझे मंज़ूर है अब
ज़ाम नज़रों से पिलाओ तो सही
अब्र में यूँ टिमटिमाता तारा हूँ
सब्र को तुम आज़माओ तो सही।